आत्मकथा भाग-3 अंश-76
ऑपरेशन वाले दिन हमारे कई परिवारी और रिश्तेदार वहाँ आ गये थे। मेरे आगरा वाले दोनों भाई-भाभी, दोनों बहनें और बहनोई, मँझले और छोटे साढ़ू और श्रीमती जी की दो बहनें और भाई सब आ गये थे। उनके आने से हमें बहुत हिम्मत बँधी। मेरे खानदान के एक चचेरे भाई श्री उमेश चन्द्र अग्रवाल, दिल्ली में ही रहते हैं। वे रिश्ते में मेरे साढ़ू भी लगते हैं, क्योंकि मेरी मौसेरी साली सुजाता का विवाह उनके साथ हुआ है। उनके पहाड़गंज में तीन होटल और दो दुकानें हैं। वे भी आ गये थे। उन्होंने मुझसे कहा कि खर्च के लिए मैं 20 लाख तक की व्यवस्था तत्काल कर सकता हूँ। 3 लाख तो वे साथ लेकर आये थे। लेकिन मैंने बताया कि खर्च की व्यवस्था हो गयी है और अगर आगे आवश्यकता पड़ेगी, तो हम उनसे ही ले लेंगे। सौभाग्य से सारा बिल केवल सवा चार लाख रुपये का बना। इतने रुपये मैंने तत्काल जमा कर दिये। कुछ नकद और कुछ ड्राफ्ट के रूप में। तीन दिन बाद श्रीमतीजी को छुट्टी मिल गयी और हम उन्हें आगरा ले गये। डाक्टर साहब ने उनको दो-तीन माह तक पूर्ण विश्राम की सलाह दी थी। मैं उनको इतने समय तक आगरा छोड़ने को तैयार था और सारे रिश्तेदार भी यही कह रहे थे, लेकिन श्रीमत