आत्मकथा भाग-3 अंश-16
चक्कर आने की बीमारी जब मैं मेरठ से इलाज कराके लौटा था, तो मेरा वजन बहुत कम हो गया था। सारे कपड़े बहुत ढीले हो गये थे और देखने में भी मैं बहुत कमजोर लगता था, जैसे किसी ने शरीर का सारा खून चूस लिया हो। लेकिन मैं केवल देखने में ही कमजोर था। वास्तव में मेरी क्षमताएँ बहुत बढ़ गयी थीं। उदाहरण के लिए, मैं बिना थके लगातार 3-4 घंटे तक भी मानसिक कार्य जैसे पुस्तक लिखना आदि कर लेता था, जबकि पहले केवल एक घंटे में ही बुरी तरह थक जाता था। जहाँ तक वजन की बात है मैं जानता था कि कुछ समय तक घर का भोजन लगातार लेते रहने पर मेरा वजन फिर सामान्य हो जाएगा। ऐसा ही हुआ भी। लेकिन मेरठ से मैं एक बीमारी अपने साथ ले आया था। वह थी चक्कर आने की बीमारी। कोई भारी चीज खा लेने पर या ठंडी हवा में चलने पर मुझे चक्कर आ जाते थे, जैसे धरती घूम रही हो। पहली बार ऐसा तब हुआ, जब मैं घर से मंडलीय कार्यालय पैदल जा रहा था। रास्ते में ही मुझे चक्कर आने लगे। एक बार तो सोचा कि वहीं बैठ जाऊँ, परन्तु फिर भी मैं चलता गया और किसी तरह मंडलीय कार्यालय पहुँच गया। वहाँ कुर्सी पर बैठते ही फिर मुझे चक्कर आये और उल्टी आने लगी। किसी तरह