आत्मकथा भाग-1 अंश-56
उस वर्ष असम आन्दोलन जोर-शोर से शुरू हो गया था। हमारी सहानुभूति स्वाभाविक रूप से आन्दोलनकारियों के साथ थी, क्योंकि वे किसी धर्म विशेष के व्यक्तियों के बजाय विदेशियों के खिलाफ थे। इस आन्दोलन के समर्थन और विरोध में छात्रों के अलग-अलग गुट बन गये थे। आन्दोलन के विरोधी गुट में एस.एफ.आई, ए.आई.एस.एफ तथा कुछ कांग्रेसी थे, तो दूसरे ग्रुप में बाकी सब शामिल थे जिनमें प्रमुख थे विद्यार्थी परिषद, युवा जनता, युवा लोकदल, समता युवजन सभा तथा कुछ चीन-परस्त नक्सलवादियों के संगठन। यहाँ पर यह बता देना आवश्यक है कि जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में चीन समर्थक छात्रों की एक बड़ी संख्या थी, जो एक ओर तो अमेरिका जैसे पश्चिमी राष्ट्रों के, तो दूसरी ओर रूस के भी कट्टर विरोधी थे। उनका आदर्श चीन और विशेषकर माओ था। एस.एफ.आई. का विरोध करने में वे सबसे आगे रहते थे, लेकिन चुनावों में कभी सफल नहीं हो पाते थे। उनके कई गुट थे जो विभिन्न नक्सलपंथी नेताओं में विश्वास रखते थे। लेकिन व्यक्तिगत रूप से वे बहुत अच्छे, विचारशील और सुसंस्कृत थे। ऐसे कई छात्रों के साथ मेरा अच्छा परिचय और मैत्री थी। श्री एस. कृष्णा राव भी उन्हीं