आत्मकथा भाग-4 अंश-25
भूकम्प के अनुभव सन् 2013-14 में उत्तर भारत में बार-बार भूकम्प आ रहा था। लखनऊ में भी इसके झटके अनुभव हो रहे थे। भूकम्प का प्रत्यक्ष अनुभव सबसे पहले मैंने पंचकूला में किया था। उस दिन रविवार था और दोपहर बाद मैं एक कुर्सी पर बैठा हुआ एक किताब पढ़ रहा था। तभी मुझे लगा कि कुर्सी हिल रही है। मैंने इसे अपना भ्रम समझा और सोचा कि मुझे चक्कर आने की बीमारी फिर से हो रही है। इसलिए मैं सँभलकर बैठ गया। लेकिन थोड़ी देर बाद ही कुर्सी फिर हिली, तो मैं समझ गया कि कुछ गड़बड़ है। तुरन्त मैं कुर्सी से उठकर बाहर भागा। तब तक वहाँ गली में बहुत से पड़ोसी अपने-अपने घर से बाहर निकल आये थे। वे बता रहे थे कि भूकम्प आया है। वह वास्तव में एक बहुत बड़ा भूकम्प था। उससे कई बहुमंजिले भवनों की दीवारों में दरारें पड़ गयी थीं। यद्यपि कोई बड़ी हानि नहीं हुई थी। यहाँ लखनऊ में हमें कई बार वैसे ही भूकम्प का अनुभव हुआ। दीवारों पर लटके हुए पंखे और खिड़कियों में लगी हुई ग्रिल तक हिलती दिखायी देती थीं। जब ऑफिस के कार्य समय में ऐसा होता था, तो हम तत्काल सब कुछ छोड़कर बाहर भागते थे और सीढ़ियों से उतरकर नीचे जाते थे। फिर काफी देर तक हम बाहर ही