आत्मकथा भाग-4 अंश-58

आरोग्य मंदिर का हाल

आरोग्य मंदिर की स्थापना एक प्राकृतिक चिकित्सा केन्द्र के रूप में डा. विट्ठल दास मोदी ने 1940 के आस-पास की थी। यह शायद भारत में प्राकृतिक चिकित्सा का पहला केन्द्र था, इसलिए इसे एक तीर्थ माना जाता है। उन्होंने न केवल इस केन्द्र को बहुत सफलतापूर्वक चलाया, बल्कि शिक्षा देकर हजारों प्राकृतिक चिकित्सकों का निर्माण भी किया। आजकल उनके सुपुत्र डाॅ विमल कुमार मोदी इस केन्द्र को चला रहे हैं। वे ऐलोपैथी में एम.बी.बी.एस., एम.डी. उपाधि प्राप्त हैं, लेकिन केवल प्राकृतिक चिकित्सा करते हैं। उनकी पत्नी डाॅ स्मिता मोदी भी एम.बी.बी.एस., एम.एस. हैं, लेकिन वे भी प्राकृतिक चिकित्सा करती हैं, हालांकि एक नर्सिंग होम भी चलाती हैं, जो वहीं एक कोने पर है। इन दो के अतिरिक्त वहाँ और भी कई प्राकृतिक चिकित्सक हैं, जो चिकित्सा एवं शिक्षण कार्य में उनकी सहायता करते हैं। आरोग्य मंदिर में पुरुषों और महिलाओं को उपचार देने की अलग-अलग व्यवस्था है।
पहले दिन अर्थात् 1 जनवरी 2019 को डाॅ मोदी तथा अन्य शिक्षकों ने अपना परिचय दिया और हमारा परिचय लिया। वे यह जानना चाहते थे कि प्राकृतिक चिकित्सा सीखने का हमारा उद्देश्य क्या है। अधिकांश ने आजीविका के रूप में इसे अपनाने का निश्चय बताया था।
परिचय सत्र के बाद अगले ही दिन से हमारी कक्षायें प्रारम्भ हो गयीं। प्रातः 6 से 7 तक और सायं 5 से 6 बजे तक हमें योगाभ्यास हेतु जाना पड़ता था। योगाभ्यास पुरुषों और महिलाओं को अलग-अलग कराया जाता था, लेकिन कक्षायें साथ-साथ होती थीं। व्यावहारिक ज्ञान के लिए हमारे समूह बनाये गये। एक समूह में 7 या 8 विद्यार्थियों को रखा गया। हर समूह को हर सप्ताह अलग-अलग तरह का व्यावहारिक ज्ञान दिया गया, जिसमें हम स्वयं प्राकृतिक चिकित्सा लेते थे और अपने दूसरे साथियों को देते थे। इसमें हमारी सहायता के लिए कोई न कोई कर्मचारी भी अवश्य होता था।
प्रातःकालीन योगाभ्यास हमें डाॅ पीयूष मणि पाण्डेय कराते थे, उसमें डाॅ निष्ठा शर्मा स्वयं विभिन्न क्रियाओं या आसनों का प्रदर्शन करती थीं, उनको देखकर वैसा ही हम करते थे। कभी-कभी प्रदर्शन के लिए दो जुड़वाँ लड़कियाँ आती थीं, जो वहाँ की एक चिकित्सिका की पुत्रियाँ हैं। दोनों बहुत अच्छी तरह सारा योग करती थीं। सायंकाल का योग एक अन्य चिकित्सिका कराती थीं, जो वहाँ पार्टटाइम सेवा करती थीं।
विभिन्न शिक्षक हमें भिन्न-भिन्न विषय पढ़ाते थे। डाॅ मोदी स्वयं हमें प्राकृतिक चिकित्सा के सिद्धान्तों से परिचित कराते थे, डाॅ पीयूष मणि पांडे हमें योग का ज्ञान देते थे, डाॅ स्मिता मोदी शरीर रचना विज्ञान पढ़ाती थीं, तथा अन्य शिक्षिकायें भी हमें प्राकृतिक चिकित्सा के विभिन्न पक्षों से परिचित कराती थीं। हमें पैथोलाॅजी का भी ज्ञान दिया गया था, ताकि हम रिपोर्ट देखकर रोग को पहचान सकें। सभी योगाभ्यासों और कक्षाओं में हर दिन उपस्थिति ली जाती थी और अनुपस्थित रहने वालों को कड़ी चेतावनी दी जाती थी।
हमारी प्रगति की जाँच के लिए हर सप्ताह शनिवार को लिखित और मौखिक परीक्षा होती थी, जिनके लिए हम पूरी तैयारी करते थे। इन परीक्षाओं में मैं प्रायः टाॅप 5 में रहता था। एक-दो बार तो मेरे अंक सबसे अधिक आये थे।
वहाँ घास का एक बड़ा मैदान है, जिसके चारों ओर टहलने या दौड़ने का कच्चा रास्ता बनाया गया है। घोर ठंड के दिनों में भी मैं नंगे पैर ही उस रास्ते पर चार चक्कर दौड़कर और फिर चार चक्कर टहलकर लगाता था। इससे मुझे बहुत लाभ हुआ था। दो महीने की अवधि में मेरा वजन 7 किलो घट गया था। पहले वह 63 था, जो घटकर 56 पर आ गया था।
आरोग्य मंदिर का भोजन बहुत सात्विक और साधारण होता था। रोटी और दो तरह की सब्जी, दलिया और कभी-कभी चावल भी बनते थे। साथ में आँवला, धनिया या मूँगफली की चटनी होती थी। सब्जियाँ बिना मिर्च-मसाले वाली होती थीं, नमक भी नहीं। कुछ लोग बिना नमक की सब्जी भी आनन्द से खाते थे। अधिकांश उसमें ऊपर से नमक डाल लेते थे। बीच-बीच में वहाँ आटे सूजी का मीठा केक और मीठा दलिया भी मिलता था। ये सब चीजें कूपन देने पर मिलती थीं। कूपनों को कार्यालय से खरीदा जा सकता था। सलाद की व्यवस्था स्वयं करनी होती थी, इसी तरह प्रातःकालीन जलपान भी स्वयं तैयार करना होता था। मैं प्रायः चने और मूँग भिगोकर अंकुरित करता था और कोई फल भी खा लेता था या गाय का दूध पी लेता था, जो वहाँ सुबह-शाम गर्म होकर आता था और जिसे कूपन देकर लिया जा सकता था।
रविवार को हमारा अवकाश रहता था। इस दिन का उपयोग हम अपनी इच्छा से कहीं भी जाने में कर सकते थे।
-- डाॅ विजय कुमार सिंघल ‘अंजान’

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